खन्ना के युवक की इटली में मौत:रोड क्रॉस करते समय हादसा, डेढ़ महीने पहले विदेश गया था किसान का बेटा

खन्ना के युवक की इटली में मौत:रोड क्रॉस करते समय हादसा, डेढ़ महीने पहले विदेश गया था किसान का बेटा

खन्ना के नजदीकी गांव सलौदी के एक युवक की इटली में सड़क हादसे में मौत हो गई। काम पर जाते समय रोड क्रॉस करते वक्त हादसा हुआ। जिसमें 24 वर्षीय परमिंदर सिंह की जान चली गई। हादसे की खबर गांव में पहुंची तो शोक की लहर दौड़ गई। डेढ़ महीने पहले गया था परमिंदर सलौदी गांव के अवतार सिंह और सुरजीत सिंह ने बताया कि परमिंदर उनका भतीजा था। अभी डेढ़ महीने पहले ही परिवार ने खुशी-खुशी उसे इटली भेजा था। इटली में परमिंदर काम करने लगा था। वह परिवार के साथ रोजाना बात करता था। हादसे से कुछ समय पहले भी फोन पर बात हुई थी, लेकिन बाद में फोन आया कि परमिंदर की हादसे में मौत हो गई है। शव लाने के लिए सरकार से मदद मांगी गांव के पूर्व सरपंच मोनू बेक्टर ने बताया कि परमिंदर का परिवार खेतीबाड़ी करके गुजारा चलाता है। परिवार में माता पिता और छोटा भाई है। डेढ़ महीने पहले ही लाखों रुपए खर्च करके परमिंदर को इटली भेजा था। अब विदेश से शव लाने के लिए भी लाखों रुपयों की जरूरत है। सरकार को परिवार की मदद करनी चाहिए और परमिंदर का शव भारत लाया जाए।

खामेनेई की बात मान लेता तो बच जाता “नसरल्लाह”, मौत से कई दिनों पहले ईरानी लीडर ने बता दिया था-“मार डालेगा इजरायल”

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ईरान के सुप्रीम लीडर को पहले ही पता चल चुका था कि हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह जल्द मारा जाने वाला है। खामेनेई चाहते थे कि वह लेबनान छोड़कर ईरान आ जाए, लेकिन नसरल्लाह ने देर कर दी और इजरायली सेना के हाथों मारा गया।

Israel-Iran War में उलझा रहा अमेरिका, मौका देख रूस ने इधर कर लिया यूक्रेन के Vuhledar शहर पर कब्जा

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यह वही शहर है जिसकी आबादी युद्ध से पहले 14,000 से अधिक थी। मगर अब तबाह हो गया है। सोवियत काल की बनी इमारतें यहां नष्ट और खंडहर हो गई हैं। मोस्कोवस्की कोम्सोमोलेट्स अखबार ने कहा कि यह यूक्रेनी सेना ती 72वीं मैकेनाइज्ड ब्रिगेड की आखिरी प्रशिद्ध प्रतिरोध इकाई है, जिसने मंगलवार देर रात शहर छोड़ दिया।

अरब देशों का स्विट्जरलैंड कहा जाता था लेबनान:शिया-सुन्नी और ईसाइयों से मिलकर बना; फिलिस्तीन की दोस्ती और इजराइल की दुश्मनी में कैसे बर्बाद हुआ

अरब देशों का स्विट्जरलैंड कहा जाता था लेबनान:शिया-सुन्नी और ईसाइयों से मिलकर बना; फिलिस्तीन की दोस्ती और इजराइल की दुश्मनी में कैसे बर्बाद हुआ

“फिलिस्तीन का साथ देना लेबनान की किस्मत में है। लेबनान अपनी किस्मत से बचकर भाग नहीं सकता।” 1969 में राजधानी बेरूत में अपना पसंदीदा सिगार पीते हुए, ये बात लेबनान के पूर्व प्रधानमंत्री साएब सलाम ने कही थी। दरअसल, साएब से एक पत्रकार ने पूछा था- फिलिस्तीन का साथ देने से क्या वहां की सरकारें लेबनान की सुरक्षा के साथ समझौता नहीं कर रही हैं। उनके इंटरव्यू को 55 साल गुजर चुके हैं। इजराइल अपने टैंक और हथियार लेकर एक बार फिर लेबनान में घुस चुका है, लेकिन इसे देखने के लिए साएब अब जिंदा नहीं हैं। लेबनान और इजराइल के आमने-सामने होने की वजह वही फिलिस्तीन है, जिसके लिए लेबनान ने दूसरे अरब देशों के साथ मिलकर इजराइल से जंग लड़ी थी। फर्क सिर्फ इतना है कि लेबनान अब अरब देशों (सऊदी अरब, मिस्र और सीरिया) में अकेला है जो फिलिस्तीन के लिए लड़ रहा है। 700 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। पर लेबनान ऐसा क्यों करता है, अपने लोगों की सुरक्षा को ताक पर रख कर इजराइल से क्यों लड़ता है? शिया, सुन्नी और ईसाइयों का ये देश कैसे बना और इसे मिडिल ईस्ट का स्विटजरलैंड क्यों कहा जाता था… जीसस ने जिस लेबनान में पानी को वाइन में बदला, वहां हिजबुल्लाह का कब्जा
लेबनान की गिनती दुनिया के सबसे छोटे देशों में होती है। इस पर रोमन, ग्रीक, तुर्कों और फ्रांसीसियों का राज रह चुका है। 217 किलोमीटर लंबे और 56 किलोमीटर चौड़े इस देश की आबादी करीब 55 लाख है। फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में आटोमन एम्पायर यानी तुर्कों के हारने के बाद 1916 में पश्चिमी देशों ने मिडिल ईस्ट की सीमाओं को अपनी मर्जी और हितों के मुताबिक बांटना शुरू किया। सीरिया पर फ्रांस ने कब्जा कर लिया। फ्रांस ने ही 1920 में सीरिया के पश्चिमी हिस्से को काटकर लेबनान बनाया। यही वजह है कि लेबनान पर फ्रांस के कल्चर का असर अब तक है। वहां के लोग अरबी भाषा के अलावा अंग्रेजी और फ्रेंच भी बोलते हैं। लेबनान उत्तर और पूर्व में सीरिया से घिरा है। जबकि इसके दक्षिण में इजराइल और पश्चिम में भूमध्य सागर है। लेबनान में आखिरी बार 1932 में जनगणना हुई थी। तब वहां सबसे ज्यादा 51% आबादी ईसाइयों की थी। इसके बाद 22% सुन्नी और 19.6% शिया मुसलमान थे। 92 साल में वहां ईसाइयों की आबादी घटकर 32% रह गई। जबकि शिया बढ़कर 31% और सुन्नी 32% हो गए हैं। लेबनान को 1943 में आजादी मिली। तय हुआ कि ईसाई देश का राष्ट्रपति होगा। सुन्नी प्रधानमंत्री बनेगा और शिया संसद का स्पीकर होगा। लेबनान में आजादी के 10 साल बाद ही यानी 1952 में महिलाओं को वोटिंग राइट्स मिल गए थे। 1960 का दशक लेबनान में गोल्डन ऐज के तौर पर याद रखा जाता है। मिडिल ईस्ट में जहां कोई देश सिर्फ सुन्नी, कोई शिया बहुल है। वहीं लेबनान में ईसाई, शिया और सुन्नी आबादी लगभग एक जितनी है। लेबनान में बेरूत से 81 किलोमीटर दूर टायर शहर में काना गांव है। यहां एक पत्थर पर पुरातन ईसाइयों ने जीसस और उनके अनुयायियों को पत्थरों पर उकेरा था। इन्हें अब तक संजोकर रखा गया है। बाइबिल के मुताबिक यहीं पर जीसस ने अपना पहला चमत्कार करके दिखाया था। जीसस ने एक शादी में पानी को वाइन में बदल दिया था। जब जीसस को मारने की कोशिश की गई तो उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ इसी शहर में बनी एक गुफा में शरण ली थी। लेबनान में ईसाई और मुस्लिम दोनों वर्जिन मैरी (जीसस की मां) की पूजा करते हैं। लेबनान को 1943 में फ्रांस से आजादी मिली थी। इसके 4 साल बाद 1947 में इजराइल की स्थापना हुई। तब से ही ये देश फिलिस्तीनी शरणार्थियों का गढ़ बना गया। लेबनान तभी से इजराइल और फिलिस्तीन की जंग में पिस रहा है। लेबनान ने इजराइल के साथ लड़ी गई दोनों जंगों (1948, 1967) में हिस्सा लिया। अरब वर्ल्ड का हिस्सा होने की वजह से ये लेबनान की जिम्मेदारी बन गई थी कि वो फिलिस्तीनियों के हक की लड़ाई लड़े। जब लेबनान मिडिल ईस्ट का स्विट्जरलैंड बना
लेबनान में 1960 के दशक में आर्थिक तरक्की के नए दरवाजे खुले। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 1950 से लेकर 1956 तक 7 सालों में लेबनान की प्रति व्यक्ति आय में 50% की वृद्धि हुई। 1956 में लेबनान में बैंक गोपनीयता कानून लागू किया गया। इस कानून के तहत खाता धारकों से जुड़ी जानकारियां साझा करने पर रोक लगा दी गई। इसका नतीजा यह हुआ कि विदेशी नागरिकों ने लेबनान में अपना धन रखना शुरू कर दिया। इसकी वजह से यहां निवेश भी बढ़ा। दूसरी तरफ लेबनान ने खुली अर्थव्यवस्था को अपनाया, जिसकी वजह से व्यापार और उद्योग पर सरकारी नियंत्रण कम था। इससे स्टार्टअप और निवेश को बढ़ावा मिला। इसकी वजह से इसे मिडिल ईस्ट का स्विट्जरलैंड भी कहा जाने लगा। इस दौरान मिस्र, सीरिया और इराक में चल रही राजनीतिक अस्थिरता की वजह से इन देशों के व्यापारी लेबनान में बस गए। इससे लेबनान की आर्थिक क्षमताएं बढ़ीं। मिस्र के अहराम अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1950 के मुकाबले 1962 में लेबनान की GDP दोगुनी हो गई थी। इस दौरान इसमें हर साल 4.5% की वृद्धि हुई। लेबनान का बैंकिंग सेक्टर भी 200% बढ़ा। साथ में बैंकों की जमाराशि भी पांच गुना बढ़ गई थी। 1950 के बाद से लेबनान में पर्यटन भी खूब बढ़ा। 1952 में राजधानी बेरूत में द स्पोर्टिंग क्लब की शुरुआत हुई, जो अमीर व्यवसायियों के लिए तैराकी और कॉकटेल का आनंद लेने की पसंदीदा जगह बन गया। आधे से अधिक मुस्लिम आबादी वाले इस देश में उस समय महिलाएं बीच (समुद्र तट) पर बिकिनी पहनकर घूम सकती थीं। लेबनान की खुशहाली को पड़ोसियों की नजर लगी, सिविल वॉर की भेंट चढ़ा 1975 आते-आते लेबनान गृह युद्ध की चपेट में आ गया। समीर मकदीसी और रिचर्ड सदाका की किताब द लेबनीज सिविल वॉर के मुताबिक लेबनान में गृह युद्ध की 3 अहम वजहें थीं… 1. धर्म के आधार पर पद की व्यवस्था… बड़े पदों पर ईसाइयों का कब्जा
साल 1943 में जब लेबनान को आजादी मिली तो यहां रहने वाले सभी 18 धर्म के लोगों को सरकार, सेना और सिविल सेवाओं में अलग-अलग पद मिले। जैसे राष्ट्रपति पद ईसाई, प्रधानमंत्री पद सुन्नी मुस्लिम और संसद के स्पीकर का पद शिया मुस्लिम को मिला। कुछ समय के बाद शिया और सुन्नी समुदाय को लगने लगा कि उनको सत्ता में कम जगह मिल रही है और अहम पदों पर ईसाइयों का कब्जा है। इसके बाद उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। इससे गृह युद्ध की नींव पड़ी। 2. आर्थिक विकास…ईसाई अमीर होते गए, मुस्लिम गरीब रह गए
1960 के दशक में लेबनान की अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव हुए, लेकिन इस आर्थिक विकास से देश में असमानता बढ़ गई। ईसाई और अमीर हुए जबकि मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा पिछड़ा और बेरोजगार रह गया। इस असमानता ने दोनों धर्मों के बीच तनाव को बढ़ाया। वर्ग संघर्ष की वजह से गृह युद्ध शुरू हो गया। 3. पड़ोस से आए सुन्नी और फिलिस्तीनियों ने बढ़ाई ईसाइयों की नाराजगी
जब लेबनान तरक्की कर रहा था, तब उसके आसपास के देश गहरे संकट में घिरे थे। इजराइल-फिलिस्तीन में संघर्ष छिड़ा हुआ था, सीरिया में गृह युद्ध चल रहा था। दोनों तरफ से सुन्नी आबादी भागकर लेबनान आ रही थी। इससे लेबनान में अचानक सुन्नी आबादी बढ़ने लगी। इसके बाद मुश्किल और ज्यादा तब बढ़ गई जब 1960 के दशक में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ने लेबनान में अपना ठिकाना बना लिया। फिलिस्तीनी शरणार्थियों के बड़ी तादाद में लेबनान में पनाह लेने से ईसाई नाराज हो गए। जब लेबनान के पूर्व PM ने बताई फिलिस्तीन का साथ देने की वजह…
1960 के दशक में फिलिस्तीनी गुरिला ग्रुप्स लेबनान का इस्तेमाल कर इजराइल पर हमला करते थे। ये ग्रुप सीरियाई बॉर्डर से हथियार हासिल कर इजराइल पर अटैक करते थे। लेबनान की सेना इन लड़ाकों पर एक्शन लेती थी। हालांकि लोगों में फिलिस्तीनियों को लेकर हमदर्दी की वजह से सेना ने कभी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की। 1969 में मिस्र की राजधानी काहिरा में लेबनान की सरकार और फिलिस्तीनी लड़ाकों के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत फिलिस्तीनी लड़ाकों को लेबनान में आजादी से घूमने-फिरने का अधिकार दे दिया गया। वे अब खुलकर इजराइल पर हमले करने लगे। इसकी वजह से लेबनान और इजराइल के संबंध हमेशा खराब रहे। फिलिस्तीन लेबनान के लिए कितना बड़ा मुद्दा रहा है ये 1969 में लेबनान के प्रधानमंत्री के इंटरव्यू से समझें… लेबनान के पूर्व प्रधानमंत्री साएब सलाम का मानना था…
लेबनान अरब दुनिया का अभिन्न हिस्सा है। इसलिए हमें हर उस चीज में शामिल होना होगा, जिसमें अरब देश शामिल हो रहे हैं। लेबनान अपनी किस्मत से बच नहीं सकता है। इस पर रिपोर्टर ने उनसे पूछा- तो क्या आप फिलिस्तीन के लिए लेबनान की सुरक्षा और शांति से समझौता करने को तैयार हैं? इसके जवाब में साएब बोले- मेरे चाहने और न चाहने से कुछ नहीं होगा। लेबनान फिलिस्तीन के मुद्दे में शामिल है और रहेगा। जब आगे उनसे पूछा गया- तो क्या आप फिलिस्तीनी लड़ाकों को लेबनान में पूरी तरह ऑपरेट करने की इजाजत देने के पक्ष में हैं। साएब का जवाब था- मैं हकीकत बताता हूं- फिलिस्तीनी लेबनान में हैं। हजारों की तादाद में हैं, 20 साल से वो शरणार्थियों के तौर पर कैंप्स में रह रहे हैं। ये कैंप मिलिटेंट्स के कैंप में बदल चुके हैं। आप उन्हें गुरिल्ला लड़ाके कहते हो। वो खुद को फिलिस्तीनी अरब बताते हैं जो फिर से अपने देश लौटना चाहते हैं। उन्हें ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता है। ईसाइयों ने 27 फिलिस्तीनियों को मारकर लिया 4 लोगों की मौत का बदला…इससे गृह युद्ध छिड़ा
अप्रैल 1975 की बात है। लेबनान में कुछ बंदूकधारियों ने एक चर्च के बाहर गोलीबारी की और 4 फालंगिस्ट (ईसाई मिलिशिया ग्रुप) को मार डाला। फालंगिस्ट का मानना था कि चर्च पर हमला फिलिस्तीनियों ने ही किया है। इससे नाराज होकर उन्होंने फिलिस्तीनियों से भरी एक बस पर हमला कर दिया जिसमें 27 लोग मारे गए। सी आजम की किताब ‘लेबनान’ के मुताबिक इस घटना के बाद ही देश में गृह युद्ध शुरू हो गया। पूर्वी बेरूत में ईसाइयों की आबादी ज्यादा थी। वहीं पश्चिमी बेरूत में मुस्लिम अधिक बसे थे। एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने पर लोगों की हत्या कर दी जाती थी। इससे धर्म और क्षेत्र के आधार पर बने अलग-अलग गुटों में लड़ाई छिड़ गई। 1975 के अंत तक लेबनान में 29 उग्रवादी संगठन के 2 लाख लोग लड़ाई लड़ रहे थे। गृह युद्ध के पहले साल 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए और 40 हजार घायल हुए। 1 लाख से ज्यादा ईसाई नागरिक अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में जाकर बस गए। वहीं, 60 हजार मुस्लिमों ने अरब देशों में शरण ली। 1976 में लेबनान के राष्ट्रपति ने पड़ोसी देश सीरिया से मदद मांगी। सीरिया के राष्ट्रपति हाफिज असद ने फिलिस्तीनी और मुसलमानों के गुटों के खिलाफ 40 हजार सैनिक भेजे। इसी बीच ईसाई गुट ने करीब 1500 मुस्लिमों का नरसंहार कर दिया। इस गुट का समर्थन सीरिया की सेना कर रही थी। इस वजह से अरब देशों ने सीरिया की काफी निंदा की। सीरिया ने जल्द ही पाला बदल लिया और वे मुसलमानों और फिलिस्तीनियों का समर्थन करने लगे। 2005 तक सीरियाई सैनिक लेबनान में ही रहे और उनके एक बड़े इलाके पर कब्जा जमाए रखा। लेबनान को इजराइल, सीरिया और फिलस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ने लड़ाई का मैदान बना लिया था। गृह युद्ध के ही दौरान साल 1982 में लेबनान में चुनाव हुए जिसमें इजराइल से नजदीकी रखने वाले बशीर गेमायल राष्ट्रपति चुने गए, लेकिन शपथ ग्रहण से पहले ही उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद इजराइल ने लेबनान पर हमला कर दिया और पश्चिमी बेरूत पर कब्जा जमा लिया। इजराइल का कहना था कि वह फिलिस्तीनी आतंकियों को खत्म करने के लिए लेबनान में घुसा है। इजराइली सेना ने सबरा और शतीला में लगभग तीन हजार फिलिस्तीनी शरणार्थियों की हत्या कर दी। इसके बाद ही इससे लड़ने के लिए हिजबुल्लाह का जन्म हुआ जिसका समर्थन ईरान ने किया। एक देश में चलने लगीं मुस्लिम और ईसाइयों की दो सरकारें
बशीर गेमायल की मौत के बाद उनके भाई अमीन गेमायल राष्ट्रपति चुने गए। 1988 में पद छोड़ने से 15 मिनट पहले अमीन ने प्रधानमंत्री सेलिम अल-होस को पद से हटाकर, ईसाई धर्म के माइकल ओन को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। लेबनान में प्रधानमंत्री पद सुन्नी मुसलमानों के लिए रिजर्व था, इससे मुसलमान बेहद नाराज हो गए और कई प्रमुख पदों से इस्तीफा दे दिया। पहले से प्रधानमंत्री सेलिम अल-होस ने पश्चिमी बेरूत से सरकार चलानी शुरू कर दी। वहीं, बाद में पीएम बने माइकल ओन ने राष्ट्रपति भवन से सरकार चलानी शुरू कर दी। इससे लेबनान में एक साथ 2 अलग-अलग सरकारें चलने लगीं। सउदी अरब ने लेबनान में गृह युद्ध को खत्म करने की कोशिशें की। साल 1989 में सउदी अरब के ताइफ में एक बैठक हुई जिसमें सुलह से जुड़े चार्टर को मंजूरी मिली। इसके तहत राष्ट्रपति के ज्यादातर अधिकार कैबिनेट को सौंप दिए गए और मुस्लिम सांसदों की संख्या बढ़ा दी गई। पहले लेबनान में ईसाई-मुस्लिम के बीच पदों का बंटवारा 6:5 था जिसे 1:1 कर दिया गया। हालांकि माइकल ओन अभी भी पद से हटे नहीं थे। अक्टूबर 1990 में सीरियाई वायु सेना ने बाबदा में राष्ट्रपति भवन पर हमला किया और ओन भाग गया। इसके साथ ही गृह युद्ध औपचारिक रूप से खत्म हो गया। जब देश में गृह युद्ध खत्म हुआ तब तक 1 लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके थे। 2 लाख से ज्यादा लोग घायल या विकलांग हुए थे। 20 फीसदी यानी कि 9 लाख लोगों ने लेबनान छोड़ दिया था। राजधानी बेरूत दो हिस्सों में बंट चुकी थी। लेबनान के गृह युद्ध के बाद लगभग सभी विद्रोही गुटों ने हथियार रख दिए, लेकिन हिजबुल्लाह ने इजराइल से लड़ना जारी रखा। शिया समुदाय का समर्थन होने के साथ ही सैन्य और राजनीतिक रूप से ताकतवर होने की वजह से लेबनान की सरकार कभी भी हिजबुल्लाह पर लगाम नहीं लगा पाई। हिजबुल्लाह चुनाव में हिस्सा लेने लगा। मई 2008 में लेबनान सरकार ने हिजबुल्लाह के प्राइवेट टेलिकॉम नेटवर्क की जानकारी सउदी अरब, अमेरिका को दे दी थी। इससे नाराज होकर हिजबुल्लाह ने बेरूत के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया था। अब इसी हिस्से पर इजराइल और हिजबुल्लाह में जंग छिड़ी है।

पाकिस्तान में इस वर्ष पोलियो के 26 मामले सामने आए

पाकिस्तान में इस वर्ष पोलियो के 26 मामले सामने आए

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पोलियो के दो नये मामले सामने आने के बाद इस साल देश में इस बीमारी के मामलों की संख्या बढ़कर 26 हो गई है। अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी।
सिंध प्रांत के कराची पूर्व और सुजावल जिलों में इन नये मामलों की पुष्टि हुई है। इन मामलों के सामने आने के बाद देश में पोलियो वायरस के उन्मूलन के प्रयासों को झटका लगा है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान में पोलियो उन्मूलन के लिए क्षेत्रीयप्रयोगशाला द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, ‘‘कराची पूर्व और सुजावल से इस साल का यह पहला मामला है, जहां पर्यावरणीय नमूनों में हाल के महीनों में पोलियो वायरस की मौजूदगी देखी गई है। इससे पता चलता है कि यह समुदायों में फैल रहा है और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।’’
पोलियो उन्मूलन के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की विशेष प्रतिनिधि आयशा रजा फारूक ने नये मामलों को पाकिस्तानी बच्चों के लिए ‘‘चिंताजनक’’ बताया और कहा कि उन्हें अभी भी एक ऐसी बीमारी से खतरा है जिससे आसानी से बचा जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘पोलियो का कोई इलाज नहीं है।’’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बार-बार टीकाकरण से बच्चों को इस ‘‘भयानक’’ बीमारी के प्रभावों से बचाया जा सकता है।
उन्होंने अभिभावकों, सामुदायिक नेताओं और शिक्षकों से आग्रह किया कि वे सभी बच्चों का टीकाकरण कराने के लिए तत्काल कदम उठाएं।

Israel-Iran War: ‘स्थिति कठिन है, पहले नहीं देखा इतना भयावह मंजर’, डर के साये में जी रहे इजरायल में भारतीय

Israel-Iran War: ‘स्थिति कठिन है, पहले नहीं देखा इतना भयावह मंजर’, डर के साये में जी रहे इजरायल में भारतीय

<p style=”text-align: justify;”><strong>Israel Iran Conflict:</strong> ईरान की ओर से मंगलवार (2 अक्टूबर 2024) को इजरायल पर मिसाइलों से हमले के बाद वहां डर का माहौल है. इजरायल में रहने वाले भारतीय नागरिकों ने अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की है. कई भारतीयों ने इजरायल की ओर से ईरानी मिसाइलों को रोके जाने के वीडियो शेयर किए हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इजरायल की राजधानी तेल अवीव में बार-इलान विश्वविद्यालय में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे कोलकाता के नीलाब्जा रॉयचौधरी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि स्थिति दिन-प्रतिदिन डरावनी होती जा रही है. मौजूदा तनाव पिछले साल 7 अक्टूबर से हमास के खिलाफ इजरायल के युद्ध के दौरान व्याप्त तनाव से कहीं अधिक है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>वीडियो शेयर कर वहां का हाल बता रहे भारतीय</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>तेलंगाना के एक केयरटेकर ने राजधानी में इमारतों पर मिसाइलों के हमले का वीडियो शेयर करते हुए कहा, &ldquo;स्थिति कठिन है. हमने इससे पहले कभी इतनी भयावह स्थिति नहीं देखी.&rdquo; इजराइल में अधिकारियों ने भारतीयों समेत कई नागरिकों को निकटतम बम शेल्टर में जाने का आदेश दिया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>न्यूज एजेंसी पीटीआई की ओर से शेयर किए गए वीडियो में एक भारतीय को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “हम सेफ्टी रूम में हैं. चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन सायरन बजने से ठीक पहले, आपको सेफ्टी रूम में जाने की आवश्यकता है. मैं तेलंगाना से हूं, तेल अवीव में रहता हूं.”</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>फिलहाल इजरायल में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे लोग</strong>&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>तेलंगाना के एक अन्य केयरटेकर पुष्पपुर सारंगधर ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि कई लोग इजरायल में ज्यादा सैलरी पाने की वजह से यहां काम करने आए थे, लेकिन अब ऐसे लोग सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “मुझे अपने दो बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाना है.”</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>भारतीय एंबेसी ने फिर जारी की एडवाइजरी</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इजरायल में भारतीय दूतावास ने मंगलवार को भारत के नागरिकों को सतर्क रहने और स्थानीय अधिकारियों की ओर से बताए गए सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करने की सलाह दी. एंबेसी ने अपनी एडवाइजरी में कहा, “कृपया सावधानी बरतें, देश के अंदर अनावश्यक यात्रा से बचें और सेफ्टी शेल्टर के पास रहें. दूतावास स्थिति पर बारीकी से नज़र रख रहा है और हमारे सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इजरायली अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क में है.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>भारतीय दूतावास के अनुसार, इजरायल में लगभग 18,000 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें मुख्य रूप से इजरायली बुजुर्गों की देखभाल के लिए उनकी तरफ से नियुक्त केयरटेकर, हीरा व्यापारी, आईटी प्रफेशनल और स्टूडेंट्स शामिल हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a title=”सद्गुरु को मिली सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, CJI ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, जानिए क्या है पूरा मामला” href=”https://www.abplive.com/news/india/isha-foundation-plea-in-supreme-court-cji-stay-madras-high-court-direction-related-with-all-criminal-cases-against-the-foundation-2796201″ target=”_self”>सद्गुरु को मिली सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, CJI ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, जानिए क्या है पूरा मामला</a></strong></p>

क्या है इजरायल का ‘पुतिन’ वाला प्लान? दक्षिणी लेबनान के लगभग 30 गावों को इलाका छोड़ जाने का अल्टीमेटम

क्या है इजरायल का ‘पुतिन’ वाला प्लान? दक्षिणी लेबनान के लगभग 30 गावों को इलाका छोड़ जाने का अल्टीमेटम

इजरायल ने हमास की पूरी तरह से कमर तोड़ दी है और अब वो हिजबुल्ला के खिलाफ ऑपरेशन को अंजाम देने में लगा हुआ है। ईरान के हमले के बाद इजरायल आर पार के मूड में नजर आ रहा है। हिजबुल्लाह को मिटाने के लिए इजरायली सैनिक लेबनान की सीमा में दाखिल भी हो चुके हैं। ग्राइंड ऑपरेशन में इस वक्त भीषण युद्ध जारी है। इन सब के बीच कतर की ओर और यूएन की ओर से शांति और समझौते की पहल की जा रही है। हालांकि दोनों देशों की बयाबाजी के बाद ऐसा लगता नहीं है कि ये पेशकश पर कोई अमल करेगा और ये सफल होगा। ईरान और इजरायल के बीच की जंग मीडिल ईस्ट में छिड़ी है। ईरान मिसाइल बरसा रहा है और इजरायल उन हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी में है। ईरान ने इजरायल पर 200 मिसाइलें दागी तो हिजबुल्लाह की ओर से भी इजरायल पर लगातार हमले हो रहे हैं।इसे भी पढ़ें: USA vs Iran: 1953 का तख्तापलट, 1979 की क्रांति, ईरान-अमेरिका क्यों और कैसे बने एक-दूसरे के दुश्मन? समझें मीडिल ईस्ट की पूरी जियोपॉलिटिक्स इजरायल ने कह दिया है कि पलटवार जोरदार होगा। ऐसा होगा कि दुनिया याद रखेगी।इसके साथ ही कहा जा रहा है कि इजरायल लेबनान में पुतिन वाला प्लान अपनाने जा रहा है। दरअसल, रूस यूक्रेन वॉर के बीच मॉस्को ने कीव को कमजोर करने के लिए यूक्रेनी शहर डोनबास को उससे अलग करने का प्लान बनाया था। जिसमें पुतिन कामयाब भी हुए थे। आगे चलकर पुतिन ने डोनाबास के दो इलाके डोनेत्सक और लुहांस्क को एक देश के तौर पर मान्यता दे दी थी। डोनाबास के अलग होने से न केवल यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा बल्कि उसके हाथ से युद्ध भी निकल गया। अब ऐसी ही रणनीति इजरायल भी लेबनान के खिलाफ अपना रहा है। इसे भी पढ़ें: Israel के साथ युद्धविराम के लिए तैयार हो गया था नसरल्लाह, लेबनान के मंत्री का दावा, अमेरिका और फ्रांस को दी गई थी जानकारीइजरायल ने लेबनान से उसके दक्षिणी भाग को अलग करने की ठान ली है। बेंजामिन नेतन्याहू जानते हैं कि नसरल्लाह की हत्या के बाद हिजबुल्लाह के पास कोई नेतृत्व नहीं है। ऐसे में नेतन्याहू इसका पूरा फायदा उठाना चाहते हैं। दक्षिणी लेबनान हिजबुल्लाह के लिए बेहद अहम माना जाता है। यहां पर मौजूद दायफ शहर उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसे हिजबुल्लाह का लाइफ लाइन भी कहा जाता है। बेरूत, त्रिपोली और सिडोन के बाद दायर लेबनान का चौथा बड़ा शहर है। दायर का लेबनान से संपर्क टूटने के बाद यूक्रेन की तरह हिजबुल्लाह की कमर टूट जाएगी। ये नीति पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ अपनाई थी और अब वही काम इजरायल लेबनान के साथ कर रहा है। 

मुस्लिम, वक्फ, गाय… अमेरिका ने धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में भारत की छवि की खराब, भड़क उठा हिंदुस्तान

मुस्लिम, वक्फ, गाय… अमेरिका ने धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में भारत की छवि की खराब, भड़क उठा हिंदुस्तान

अमेरिकी संघीय सरकारी आयोग की रिपोर्ट में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति खराब होने का आरोप लगाया गया और धार्मिक स्तर पर हो रहे उल्लंघनों को ध्यान में रखते हुए उसे विशेष चिंता वाले देश के रूप में शामिल करें। रिपोर्ट पर मीडिया के सवालों के जवाब में विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा कि रिपोर्ट भारत के बारे में तथ्यों को गलत तरीके से पेश करती है और एक प्रोपगैंडा को बढ़ावा देती है। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग (यूएससीआईआरएफ) पर हमारे विचार सर्वविदित हैं। यह राजनीतिक एजेंडे वाला एक पक्षपाती संगठन है। यह तथ्यों को गलत तरीके से पेश करना और भारत के बारे में एक प्रेरित कहानी को बढ़ावा देना जारी रखता है। हम इस दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट को अस्वीकार करते हैं।इसे भी पढ़ें: Delhi-NCR में घर लेना पसंद नहीं कर रहे लोग, अब ये शहर बना आशियाना बनाने के लिए फेवरेट7 पेज वाले इस दस्तावेज को वरिष्ठ नीति विश्लेषक सेमा हसन ने लिखा है। धर्म संबंधित रिपोर्ट में कहा कि भारत ने अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले USCIRF के लोगों को देश का वीजा देने से इंकार किया है।इसके अलावा वहां धार्मिक नेताओं को मनमाने तरीके से गिरफ्तार कर लिया जाता है।  के आधार पर घरों और धार्मिक पूजा स्थलों को निशाना बनाया जाता है। रिपोर्ट में मुस्लिम, वक्फ संशोधन बिल, गोहत्या विरोधी कानून का जिक्र किया गया है।इसे भी पढ़ें: Israel रुकेगा नहीं! एयरस्ट्राइक कर अब किस चीफ का किया खात्मा, IDF ने कहा- Eliminatedभारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग (यूएससीआईआरएफ) पर हमारे विचार सर्वविदित हैं। यह राजनीतिक एजेंडे वाला एक पक्षपाती संगठन है। यह तथ्यों को गलत तरीके से पेश करना और भारत के बारे में एक प्रेरित कहानी को बढ़ावा देना जारी रखता है। रणधीर जयसवाल ने कहा कि सरकार दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट को खारिज करती है। उन्होंने कहा, “यह रिपोर्ट केवल यूएससीआईआरएफ को और अधिक बदनाम करने का काम करती है।

अमेरिकी रिपोर्ट में दावा- भारत में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए:भारत का जवाब- यह हमारे खिलाफ प्रोपेगैंडा; हमारी छवि खराब करने की कोशिश

अमेरिकी रिपोर्ट में दावा- भारत में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए:भारत का जवाब- यह हमारे खिलाफ प्रोपेगैंडा; हमारी छवि खराब करने की कोशिश

भारत ने गुरुवार को अमेरिका की धार्मिक आजादी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि धार्मिक मामलों पर बने अमेरिकी कमीशन USCIRF संस्था निष्पक्ष नहीं है। यह भारत को लेकर गलत तथ्य पेश करके हमारी छवि खराब करना चाहता है। हम उनकी रिपोर्ट को खारिज करते हैं। दरअसल अमेरिकी कमिशन ने 2 अक्टूबर को धार्मिक स्वतंत्रता पर एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें कहा गया था कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों को लेकर झूठ फैलाया गया और इसके बुनियाद पर उन पर हमले किए गए। इसके अलावा उनके पूजास्थलों को भी निशाना बनाया गया। इस पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि कमीशन को एक एजेंडा पर आधारित रिपोर्ट शेयर करने से बचना चाहिए। उन्हें अपने समय का इस्तेमाल अमेरिका में मानवाधिकार से जुड़े मुद्दे उठाने पर करना चाहिए। भारत को चिंता वाले देशों की सूची में डालने की मांग
USCIRF ने अपनी रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश मंत्रालय से भारत को चिंता वाले देशों की सूची में रखने की मांग की थी। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिकी कमीशन ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर सवाल उठाए हैं। इससे पहले मई में आई एक रिपोर्ट पर विदेश मंत्रालय ने कहा था कि हम USCIRF से कभी यह उम्मीद नहीं करते हैं कि वे भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्य को समझ सकता है। वह सिर्फ भारत के चुनाव में दखल देने की कोशिश कर रहा है, जो कभी सफल नहीं होगी। लोकसभा चुनाव में भी मुस्लिमों के हित पर उठे थे सवाल
मई में लोकसभा चुनाव के वक्त अमेरिकी मीडिया में भी भारत में धार्मिक आजादी को लेकर कई रिपोर्ट्स सामने आई थीं। इसमें कहा गया था कि भारत के चुनाव मुसलमानों के खिलाफ हैं। उन्हें उनके ही देश में दरकिनार किया जा रहा है। हालांकि, बाद में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इन रिपोर्ट्स पर सफाई भी दी थी। मंत्रालय ने कहा था कि अमेरिका दुनियाभर में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करने के लिए हमेश तैयार रहता है। हमें इसके लिए भारत समेत कई अन्य देशों का साथ मिला है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया था, जिसमें बताया गया था कि भारत में मुसलमानों का दमन हो रहा है। ब्रिटिश अखबार ने कहा था- भारत के लोकतंत्र में खामियां
इससे पहले फरवरी में ब्रिटिश अखबार द इकोनॉमिस्ट ने भी एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। इसमें कहा गया था कि भारत के लोकतंत्र में खामियां हैं। 167 देशों में लोकतंत्र की रैंकिंग के साथ छपी इस रिपोर्ट में भारत को 41वां स्थान मिला था। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कुछ खामियों के साथ लोकतंत्र मौजूद है। भारत के स्कोर में बड़ी गिरावट साल 2019 में दर्ज की गई थी। हालांकि, इसके बाद से देश का स्कोर लगातार बेहतर हुआ है।

छिड़ गया नया वॉर? इजरायल की ओर ईरान ने बरसाईं मिसाइलें, US ने चंद घंटे पहले किया था आगाह

छिड़ गया नया वॉर? इजरायल की ओर ईरान ने बरसाईं मिसाइलें, US ने चंद घंटे पहले किया था आगाह

<p style=”text-align: justify;”><strong>Israel&ndash;Hezbollah Conflict:&nbsp;</strong>ईरान की ओर से इजरायल की तरफ मंगलवार (एक अक्टूबर, 2024) रात कई मिसाइलें दागी गईं. इजरायली डिफेंस फोर्सेज की ओर से पुष्टि की गई कि ईरान ने इजरायल की तरफ कई मिसाइलें लॉन्च की हैं, जबकि इससे पहले इजरायली शहर तेल अवीव में आतंकियों ने गोलीबारी की थी. फायरिंग के दौरान कम से कम 10 इजरायलियों के घायल होने की खबर है, जिनमें चार गंभीर रूप से जख्मी हुए. शुरुआती मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि एम-16 और एक-47 से दो लोगों ने आम लोगों पर हमला किया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>रोचक बात है कि इजरायल की ओर ईरान की तरफ से तब मिसाइलें दागी गईं, जब मंगलवार की शाम को यूएस ने इस बारे में आगाह किया था. अमेरिकी अफसरों ने न्यूज एजेंसी ‘एपी’ को बताया था कि इजराइल पर ईरान बैलिस्टिक मिसाइल हमले की तैयारी कर रहा है. ऐसे में उन्होंने तेहरान को गंभीर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><img src=”https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2024/10/01/60f07a74db12d598993515d8e72583b81727801492477947_original.jpg” /></p>
<p style=”text-align: justify;”>व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘एएफपी’ को बताया कि अमेरिका को इस बात के संकेत मिले हैं इजरायल पर ईरान एक बैलिस्टिक मिसाइल हमले की कोशिश में लगा हुआ है. अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि इस हमले से इजरायल की रक्षा करने के लिए हम रक्षात्मक तैयारियों का समर्थन कर रहे हैं. बता दें कि कुछ महीने पहले भी अमेरिका और उसके अन्य पश्चिमी सहयोगियों ने ईरान के मिसाइल और ड्रोन हमले में इजरायल की सहायता की थी.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>हिजबुल्लाह ने किया बड़ा दावा</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>हिजबुल्लाह ने कहा कि उसने इजरायल के लेबनान में नागरिकों पर हमले का बदला लेने के लिए ही तेल अवीव को टारगेट किया है. इस ऑपरेशन को हिजबुल्लाह ने अपने चीफ हसन नसरल्लाह को समर्पित करने की बात कही है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>इजरायल ने क्या कहा?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>ईरान के हमले की धमकी और इनपुट्स के बाद इजरायल भी सतर्क हो गया है. इजरायली सेना ने कहा कि फिलहाल ईरान की तरफ से कोई भी हवाई खतरा नहीं है लेकिन बचाव और हमले के लिए हम पूरी तरह तैयार हैं. इस बीच हिजबुल्लाह ने तेल अवीव के नजदीक एक एयरबेस पर मिसाइल दागने का बड़ा दावा कर दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हिजबुल्लाह ने कहा कि उसने तेल अवीव के बाहरी इलाके में स्थित सेड डोव एयरबेस को निशाना बनाया है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>इजरायली सेना के प्रवक्ता रियर एडमिरल डैनियल हैगरी ने कहा, ‘अतीत में हम ऐसे खतरों से मजबूती से निपटे हैं और आगे भी निपटा जाएगा. इजरायल की वायु रक्षा प्रणाली पूरी तरह से ऐसे हमलों का सामना करने के लिए तैयार है. हम अपने सहयोगी अमेरिका के साथ मिलकर किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं.’ ईरान में हो रहे घटनाक्रम पर हमारी नजर है. वहीं रूस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि लेबनान के क्षेत्र से इजरायल अपनी सेना को वापस बुलाए.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>भारत ने जारी की एडवाइजरी&nbsp;</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इस बीच इजराइल स्थित भारतीय दूतावास ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी कर दी है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर भारतीय दूतावास ने लिखा, ‘क्षेत्र में मौजूदा स्थिति के मद्देनजर सभी भारतीय नागरिकों को सतर्क रहने और स्थानीय अधिकारियों के बताए सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करने की सलाह दी जाती है. देश और राज्यों के भीतर अनावश्यक यात्रा करने से बबचें और सुरक्षा आश्रयों के करीब रहें. दूतावास स्थिति पर बारीकी से नजर रखे हुए है. किसी भी आपात स्थिति में 24/7 हेल्पलाइन से संपर्क कर सकते हैं. ये हेल्पलाइन +972-547520711, +972-543278392 हैं.'</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें: <a href=”https://www.abplive.com/news/world/israel-iran-conflict-foreign-affairs-minister-says-they-should-not-be-happy-but-be-worried-about-future-2795127#google_vignette”>Israel-Iran Conflict: ईरान लेगा इजरायल से इंतकाम! विदेश मंत्री ने किया साफ- वो चिंता करें, US दे रहा साथ</a></strong></p>

US election 2024 VP debate: ट्रंप-हैरिस के बाद अब बारी दोनों के डिप्टी की, जेडी वेंस और टिम वाल्ज के बीच पहली डिबेट

US election 2024 VP debate: ट्रंप-हैरिस के बाद अब बारी दोनों के डिप्टी की, जेडी वेंस और टिम वाल्ज के बीच पहली डिबेट

रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जेडी वेंस और टिम वाल्ज़ के बीच 1 अक्टूबर यानी आज पहले एक मात्र फेस ऑफ मुकाबला होगा। डोनाल्ड ट्रम्प और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बीच 10 सितंबर को हुए दिलचस्प डिबेट के बाद अब भारी दोनों नेताओं के डिप्टी की है। सीबीएस न्यूज़ के अनुसार, नेटवर्क ने मुख्य रूप से मिनेसोटा के गवर्नर टिमवाल्ज़ और ओहियो के सीनेटर जेडी वेंस को चार तारीखों का प्रस्ताव दिया था। जिसके बाद  1 अक्टूबर की तारीख को अंतिम रूप दिया गया। इसे भी पढ़ें: वजूद बचाने के लिए लड़ता-भिड़ता इजरायल, अमेरिका का मकसद अपने आप पूरा होता जा रहा, ईरान के सामने कड़ा इम्तिहान14 अगस्त को टिम वाल्ज़ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया था जिसमें लिखा था, ‘1 अक्टूबर को मिलते हैं, जेडी’। यूएसए टुडे के अनुसार, रिपब्लिकन उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जेडी वेंस ने तुरंत प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और सीबीएस नेटवर्क ने भी घोषणा की कि बहस 1 अक्टूबर को होगी। 90 मिनट की बहस मंगलवार, 1 अक्टूबर को रात 9 बजे ईटी पर शुरू होने वाली है।